जब रिश्तेदारों को यह पता चला कि मैं किन्नर हूं, तो मेरी मां को बहुत ताने सुनने पड़े, जैसे कि “कैसा कोख है जिसने किन्नर पैदा किया।” मेरा चलने का तरीका लड़कियों जैसा था और स्वभाव में भी महिला प्रवृत्तियां ज्यादा थीं। मेरे दोस्त मुझे अलग-अलग नामों से ताने मारते और छेड़ते रहते थे। जब मैं हॉस्टल इंचार्ज या प्रोफेसर के पास जाकर मदद की गुहार लगाती, तो उल्टा मुझे ही डांट सुननी पड़ती थी कि “लड़कियों जैसा चाल-ढाल क्यों रखती हो?” समाज के इस रवैये ने मुझे बेहद चोट पहुंचाई, लेकिन मैं इससे न हार कर खुद को स्वीकारते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करती रही।
“घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा,” उन्होंने कहा। उनका मानना था कि समाज में मर्दों को कभी दोष नहीं दिया जाता, लेकिन उनकी मां को इस बात के लिए बहुत ताने सुनने पड़े। उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी पुरुष, महिला, या किन्नर जन्म लेता है, तो वह सब नारायण की इच्छा से होता है। इसमें किसी स्त्री का कोई दोष नहीं होता। वे किन्नर हैं, लेकिन इस सच को समझना चाहिए कि वे भी इंसान हैं, और उनका अस्तित्व भी भगवान की मर्जी से है। समाज को यह स्वीकार करना चाहिए कि किसी की पहचान या लिंग तय करना किसी का अधिकार नहीं है, और हर व्यक्ति को सम्मान और प्यार मिलना चाहिए।
कई किन्नर समाज के लोग आजकल पैसे कमाने की होड़ में सनातन से दूर हो गए हैं, और कुछ लोग उन्हें इस परंपरा से दूर करने की कोशिश भी कर रहे हैं। लेकिन यह जरूरी है कि हम उन्हें सनातन के असली महत्व को समझाएं, जहां किसी भी रूप में भेदभाव नहीं किया जाता। सनातन परंपरा में न तो लैंगिक भेदभाव है, न जातीय भेदभाव। यहां पर हर जीव और व्यक्ति को सम्मान दिया जाता है। पेड़-पौधे, नदी, पशु-पक्षी, और इंसान – सभी का स्थान समान है। सनातन में यह सिखाया जाता है कि हम सभी एक ही ब्रह्म के अंश हैं, और हर किसी को समान अधिकार और आदर मिलना चाहिए। किन्नर समाज को भी इस विचारधारा को समझना चाहिए, ताकि वे अपने असली पहचान और सम्मान के साथ समाज में योगदान कर सकें। यह जरूरी है कि हम सब मिलकर इन विचारों को फैलाएं, ताकि समाज में सभी के लिए समानता और सम्मान हो।
STORY:
यह कहानी है एक अद्भुत व्यक्ति की, जो किन्नर अखाड़े के सदस्य होने के साथ-साथ एक LGBT संत भी हैं। उनका नाम अरावन देव है, जिनका जीवन एक अनोखी परंपरा और संघर्ष की दास्तान है। अरावन देव ने एक बार जमदाग्नि से शादी की, जो एक विशेष परंपरा का हिस्सा थी। लेकिन यह विवाह सिर्फ तीन दिन ही चला, क्योंकि उसी दौरान जमदाग्नि की मृत्यु हो गई और अरावन देव विधवा हो गए। इस विवाह और विधवापन की अनूठी परंपरा किन्नर समाज के बीच एक गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता का हिस्सा है।
अरावन देव का जीवन इस से भी अधिक रोचक है, क्योंकि वे मुर्गे वाली माता की पूजा करते हैं। यह पूजा एक विशेष धार्मिक रीति है, जो उनके समाज में खास महत्व रखती है। इस पूजा के माध्यम से वे जीवन के संघर्षों और समाज में भेदभाव के बावजूद अपने आत्मविश्वास और विश्वास को मजबूत बनाए रखते हैं। अरावन देव का जीवन एक प्रेरणा है, जो यह सिखाता है कि समाज के हर रूप को स्वीकार करना और खुद को पहचानना सबसे महत्वपूर्ण है।