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बड़ी सादड़ी उपखंड के आलाखेड़ी गांव में इन दिनों भक्ति और श्रद्धा की एक अलग ही छटा बिखरी हुई है। यहां स्थित राधे कृष्ण मंदिर में *भव्य 15 दिवसीय झूला महोत्सव* का आयोजन श्रद्धा और उल्लास के साथ किया जा रहा है। यह महोत्सव ना केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि पूरे क्षेत्र में सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का भी एक सशक्त प्रतीक बन गया है।
मंदिर परिसर में प्रतिदिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप को चंदन से सुगंधित, रंग-बिरंगे फूलों से सजे झूले में झुलाने की परंपरा निभाई जा रही है। श्रद्धालु बाल गोपाल के इस मनमोहक रूप के दर्शन कर धन्य हो रहे हैं। झूले की इस रस्म को देखने और श्रीकृष्ण को झुलाने के लिए सुबह से ही मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है।
महोत्सव के अंतर्गत प्रतिदिन कथा वाचन, प्रवचन, भजन संध्या, संगीतमय सुंदरकांड पाठ और ‘हरी बोल’ की मधुर धुनों का आयोजन किया जा रहा है। इन आयोजनों के माध्यम से वातावरण पूरी तरह से आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। हर दिन मंदिर की चौखट पर उमड़ती भक्तों की भीड़ यह सिद्ध करती है कि कृष्ण भक्ति आज भी जनमानस के हृदय में गहराई से विद्यमान है।
भजन गायकों में सूरज चौबीसा एवं भेरूलाल भाट की प्रस्तुतियों ने तो जैसे पूरे महोत्सव में प्राण फूंक दिए हों। जब भेरू लाल भाट की स्वर लहरियों पर “नंदलाला के झूले पड़े” जैसे भजनों की गूंज होती है, तो मंदिर परिसर भक्तिरस में डूब जाता है। वहीं सूरज चौबीसा के सुमधुर भजनों पर भक्तजन थिरकते नजर आते हैं। माता-बहनें, ग्रामीण सखियां और छोटे-छोटे बालक-बालिकाएं भी भक्ति में ऐसे रमे हैं मानो वृंदावन का दृश्य सजीव हो उठा हो।
इस पावन अवसर पर आलाखेड़ी गांव पूर्णतः भक्ति नगरी में तब्दील हो गया है। मंदिर प्रांगण में सजीव कृष्ण लीला, भजनों की मनोहर ध्वनि और झूलते बाल गोपाल का दृश्य हर किसी को भावविभोर कर देता है। हर ओर “राधे राधे” और “हरी बोल” की गूंज सुनाई देती है।
यह महोत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समरसता का भी संदेश देता है। निश्चित रूप से, आलाखेड़ी का यह झूला महोत्सव आने वाले वर्षों में और भी भव्यता से मनाया जाएगा।