महा कुंभ में आने वाले भक्तों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। न केवल भारत से, बल्कि विदेशों से भी लोग इस धार्मिक आयोजन का हिस्सा बन रहे हैं। महाकुंभ के आकर्षण ने दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर खींचा है। संगम के किनारे, जहां साधुओं की दुनिया बसती है, अब विदेशी भी देखे जा रहे हैं। ये लोग महाकुंभ की आस्था और धर्मिक माहौल को अनुभव करना चाहते हैं। इस बार, खासकर महिला नागा साधुओं का रहस्यमयी संसार लोगों को आकर्षित कर रहा है। विदेशी पर्यटक इन साधुओं की जीवनशैली और उनके अद्भुत विश्वासों को नजदीक से समझने के लिए उत्सुक हैं। यह नजारा महाकुंभ के महत्व को और बढ़ा रहा है, क्योंकि यहाँ पर विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के लोग एक साथ आते हैं और एक अद्वितीय अनुभव साझा करते हैं। महाकुंभ का यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी एक वैश्विक घटना बन चुका है। Mahila naaga sadhu diksha
मनकामेश्वर मठ की दिव्या गिरी ने महिला नागा संन्यासियों के जीवन के बारे में बताया कि वे तपस्या और कठिन साधना के मार्ग पर पुरुषों की तरह ही चलती हैं। महिला नागा साधुओं को संन्यास धारण करने के लिए अपने श्रृंगार और सांसारिक आकर्षणों का त्याग करना होता है।
हिंदू रीति-रिवाज और सनातन धर्म में महिलाओं का पिंडदान करना सामान्यतः नहीं माना जाता है, लेकिन साध्वी जीवन जीने वाली महिलाओं के लिए यह नियम लागू नहीं होते। दिव्या गिरी ने स्पष्ट किया कि वे अपना पिंडदान इसलिए करती हैं ताकि उनके जीवन के बाद अगर कोई उनका अंतिम संस्कार करने वाला न हो, तो उन्हें किसी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े। पिंडदान उनके आत्म-संस्कार का एक रूप बन जाता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे मृत्यु के बाद भी शांति से आगे बढ़ सकें।
महिला नागा साधुओं का यह जीवन बहुत ही कठोर और समर्पण से भरा होता है, जो न केवल शरीर, बल्कि आत्मा की भी गहरी तपस्या का प्रतीक है।
महिला नागा साधु कैसे बनते
महिला नागा साधु बनने का मार्ग अत्यंत कठिन और तपस्वी होता है। एक महिला को नागा साधु बनने के लिए 15 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। इस दौरान उसे किसी भी पुरुष के प्रति आकर्षण और आसक्ति से बचना होता है। यह तपस्या महिला को न केवल मानसिक, बल्कि शारीरिक रूप से भी सशक्त बनाती है।
महिला साधु को पुरुष साधु की तरह ही कठोर परीक्षा से गुजरना होता है। इस प्रक्रिया में उसे खुद और अपने परिवार का पिंडदान करना पड़ता है, ताकि जीवन के बाद उसे कोई अनकही समस्या न हो। साध्वी बनने के लिए महिलाओं को शरीर और मन दोनों की कठिन तपस्या करनी होती है, और यह प्रक्रिया सहज नहीं होती।
महिला नागा साधु बनने के लिए कई रातें शमशान में बितानी पड़ती हैं, जहां उन्हें अकेले और भय के बीच अपनी आस्था और समर्पण का परीक्षण करना होता है। इसके साथ ही, उन्हें कांटों पर सोने और भयंकर कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है। यह सब साध्वी जीवन के अनुशासन का हिस्सा है, जो महिला साधुओं को उनके लक्ष्य और साधना की ओर अग्रसर करता है।
इस कठिन और तपस्वी जीवन को अपनाने वाली महिला साधुओं का उद्देश्य न केवल सांसारिक सुखों से दूर रहना है, बल्कि आत्मज्ञान, मोक्ष और ईश्वर के प्रति समर्पण की उच्चतम स्थिति तक पहुंचना है। इन साधुओं के जीवन में भव्यता नहीं होती, बल्कि उनके जीवन का उद्देश्य सिर्फ ईश्वर से जुड़ने और संसार के बंधनों से मुक्ति पाने का होता है।